विदेशों में कई भारतीय कमाने जाते हैं, वहां उनके साथ साथ क्या हो रहा है क्या नहीं ये कोई नहीं जनता, सिवाए उनके। बहुत बार अरब देशों में भी भारतीयों के साथ गलत होते देखा जाता है. कोई वहां जाकर फंस गया या किसी भारतीय कामगार की वहां जान चली गयी. इन सबसे निपटने के लिए फंसे भारतीय लोग भारत सरकार से गुहार लगाते हैं ताकि उन्हें वापस लाया जा सके.
ऐसी ही इंसानियत से भरा काम भारत की एक महिला करती है जो विदेशों में फंसे या मरे भारतीयों की लाश भारत वापस लाने में मदद करती है. पंजाब की इस महिला ने अपने काम को खुद बताया है. उन्होंने कहा कि “मैं अमनजोत कौर रामूवालिया, पंजाब की रहने वाली हूं। मुख्य रूप से दो कामों की वजह से मेरी पहचान है. पहला- विदेशों में जो लोग जंगलों में, समुद्रों में या किसी तहखाने में काटकर फेंक दिए जाते हैं, उनकी शव भारत लाने का काम करती हूं।
मेरे परिवार के लिए यह काम धर्म जैसा है। 40 साल से हम विदेशों से लाशें लाने का काम कर रहे हैं। पहले पापा करते थे और अब10 साल से इसे मैं कर रही हूं।
कई बार किसी लड़की को विदेशों में बंदी बना लिया जाता है। उसका शोषण किया जाता है। मेरे पास नई नवेली छोड़ी हुई दुल्हनें भी आती हैं, पेट में बच्चा होता है और शौहर विदेश भाग जाता है। इनके हक के लिए इन्हे न्याय दिलाती हूं.”
आज आपको कुछ किस्से बता रही हूं :
पहला किस्सा- तकरीबन 3 साल पहले की बात है। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के एक नौजवान की सऊदी अरब में मौत हो गई। वह सीमेंट फैक्ट्री में ट्रक चलाने का काम करता था। किसी वजह से ट्रक में थोड़ी खराबी आई तो झुककर वो ट्रक के नीचे देखने लगा। तभी ट्रक में भरा हुआ सीमेंट उसके ऊपर गिर गया। उस सीमेंट में केमिकल मिला हुआ था। लड़का बुरी तरह जल गया। मौके पर ही उसकी मौत हो गई।
उस युवक के माता-पिता को खबर मिली, तो वे बिलखते हुए इधर-उधर भटक रहे थे। किसी ने उन्हें मेरे बारे में बताया। वे मेरे पास आए और सारी कहानी बताई. मैंने किसी तरह से नवदीप सूरी (इंडियन एंबेसडर) की मदद से सऊदी अरब से उस लड़के की लाश दिल्ली मंगवाई। वह 5 बहनों का इकलौता भाई था। मन किया कि मैं इस लड़के के दाह संस्कार में जाऊं। दिल्ली से लखनऊ की फ्लाइट ली. जब लखनऊ एयरपोर्ट पर उतरी तो पता लगा कि उस लड़के की लाश भी इसी फ्लाइट में थी। जब लड़के की लाश लेकर उसके गांव पहुंची, तो वहां तीन से चार गांवों के लोग हमारा इंतजार कर रहे थे। जैसे ही बॉक्स से उसकी लाश निकाली गई, वहां चीख-पुकार मच गई।
उस लड़के का घर फूस का बना था। छत से कमरे के अंदर रोशनी आ रही थी, क्योंकि छत टूटी हुई थी। बैठने वाले कमरे में ही दो छोटे पशु बंधे थे। मैं उसके अंतिम संस्कार से तो वापस आ गई, लेकिन कई महीनों तक मुझे नींद नहीं आई। मुझे खुद का इलाज करवाना पड़ा।
कई लोग मेरा हौसला बढ़ाते हैं। लोगों के भरोसे और मदद की बदौलत ही ये काम मैं कर पाती हूं। इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर पंजाब पुलिस ने मुझे सम्मानित किया था।
दूसरा किस्सा- कुछ महीने पहले की बात है। थाईलैंड में एक लड़के के साथ धोखा हो गया। निजी दुश्मनी में कुछ लोगों ने उसकी जेब में नकली आईडी डालकर उसे पुल से धक्का दे दिया। मां-बाप हर दिन सिर्फ इतना बोलते कि मैडम आखिरी बार मुंह दिखवा दो बच्चे का, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकी, क्योंकि जब कोई अपराधी करार हो जाता है, तो थाईलैंड सरकार न तो डेड बॉडी देती है, न राख। मैंने हाथ जोड़कर मां-बाप से माफी मांगी कि मैं उनकी कोई मदद नहीं कर सकी।
कई बार मां-बाप की बूढ़ी आंखें अपने बच्चों की राह देखते-देखते पथरा जाती हैं। उन्हें कौन समझाए कि उनका बच्चा अब वापस नहीं आने वाला है। उनका बच्चा इस दुनिया से चला गया है। जब लाश लेकर उनके गांव पहुंचती हूं, तो मां-बाप की चीखें कलेजा चीर देती हैं.